सीएसआईआर - कोशिकीय एवं आणविक जीवविज्ञान केन्द्र
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Date : अक्टूबर 15, 2024
17th October, 2022: Being at the crossroad of the Himalayan region, Nepal offers a unique ground to understand South and East Asian genetic ancestry. The Himalayan Mountains range of Nepal has served as a geographical barrier to population migration, while at the same time, its valleys have served as continuous trade and exchange. Yet, despite the long-term economic and cultural importance of Himalayan trade routes, little is known about peopling and the early population history of this region. An international team of researchers led by Dr. K Thangaraj, CSIR-Centre for Cellular and Molecular Biology (CCMB), Hyderabad, India, have studied the maternal ancestry of Nepal populations, and the results were published on 15th October 2022 in the journal Human Genetics.
“This is the first largest study on the Nepali populations, where we have analyzed the mitochondrial DNA sequence of 999 individuals from different ethnic groups of Nepal, including Newar, Magar, Sherpa, Brahmin, Tharu, Tamang, and populations from Kathmandu and Eastern Nepal and found that most Nepali populations have derived their maternal ancestry from the lowland populations than the highlanders,” said Dr. K Thangaraj, who is presently the director of DBT-Centre for DNA Fingerprinting and Diagnostics (CDFD), Hyderabad
The results obtained from this study helped the researchers in filling several critical gaps about the history and past demographic events that shaped the present Nepalese genetic diversity. “Our study showed that the ancient genetic make-up of Nepalis was gradually transformed by various mixing episodes along the migratory path to Nepal; the carriers of some mitochondrial lineages may have crossed the Himalayas into Nepal, most likely via Southeast Tibet, between 3.8 and 6 thousand years ago,” said Rajdip Basnet, the first author of the study from Tribhuvan University, Nepal.
“Tibeto-Burman communities like Newar and Magar revealed distinct population history than contemporary high-altitude Tibetans/Sherpas. This study using history, archaeological and genetic information has helped us in understanding the population history of Tibeto-Burman communities of Nepal,” said Dr. Niraj Rai, one of the authors from DST- Birbal Sahni Institute of Palaeosciences, Lucknow.
“The cultural ties of Nepal with India and Tibet reflected in their genomic ancestry,” said Gyaneshwer Chaubey, a Professor from Banaras Hindu University and co-author of the study. “Such a study is helpful for establishing the genetic affinities of populations across our border and for better understanding of early human migration,” said Dr. Vinay K Nandicoori, the director of CSIR- Centre for Cellular and Molecular Biology.
Contact: K. Thangaraj (9908213822)
हिमालय क्षेत्र का मख्ु य भाग िोने के कारण, नेपाल दक्षक्षण और पर्ू व एशिया के लोगो के डीएनए के बारे में मित्र्पणू व जानकारी प्रदान कर सकता िै। नेपाल की हिमालय पर्तव श्खृंर ला ने मनष्ुय के माइग्रेिन के शलए एक बैररयर का काम ककया िै, जबकक साथ िी, इसकी घाहियों ने ननरृंतर व्यापाररक रूप लोगो को जोड़ने का काम ककया िै। इस ऐनतिाशसक हिमालयी व्यापार मागों के आर्थकव और साृंस्करनतक मित्र् के बार्जूद, इस क्षत्रे के लोगों के डीएनए और माइग्रेिन के बारे में बिुत कम जानकारी िै। सीएसआईआरसेललु र और आणवर्क जीर्वर्ज्ञान केंद्र (सीसीएमबी), िैदराबाद, भारत के डॉ के थगृं राज के नेतत्रर् में िोधकताओव ृं की एक अतृं रराष्रीय िीम ने नेपाल की आबादी के मातरर्िृं का अध्ययन ककया िै जजसके पररणाम 15 अक्िूबर 2022 को ह्यमू न जेनेहिक्स पत्रत्रका में प्रकाशित ककए गए िैं। .
“नेपाली लोगो पर यि पिला सबसे बड़ा अध्ययन िै, जिाृं िमने नेर्ार, मगर, िेरपा, ब्राह्मण, थारू, तमाृंग और काठमाृंडूऔर पर्ू ी नेपाल की आबादी सहित नेपाल के वर्शभन्न जातीय समिूों के 999 व्यजक्तयों के माइिोकॉजन्ियल डीएनए सीक्र्ेंस का वर्श्लेषण ककया िै। और पाया कक अर्धकाृंि नेपाली आबादी ने हिमालय के उचाई पर रिने र्ाले लोगो की तलु ना में तराई की आबादी से अपने मातरर्िृं को प्राप्त ककया िै” डॉ के थृंगराज ने किा, जो र्तवमान में डीबीिी-सेंिर फॉर डीएनए कफृं गरवप्र ृंहिृंग एृंड डायग्नोजस्िक्स (सीडीएफडी), िैदराबाद के ननदेिक िैं।
इस अध्ययन से प्राप्त पररणामों ने िोधकतावओृं को इनतिास और अतीत की डेमोग्राकिक घिनाओृं के बारे में कई घिनाक्रमों को पता करने में मदद की जजसने र्तमव ान नेपाली आनर्ु शृं िक वर्वर्धता को बनाया। “िमारे अध्ययन से पता चला िै कक नेपाशलयों के प्राचीन अनर्ु ाृंशिक डीएनए को धीरे-धीरे वर्शभन्न शमश्ण एवपसोड द्र्ारा बदल हदया गया था; साथ िी दक्षक्षणपर्ू व नतब्बत के रास्ते 3.8-6 िजार साल पिले लोगो के हिमालय पार करने के प्रमाण शमले िै, ” इस अध्ययन के पिले लेखक राजदीप बसनेि जो त्रत्रभर्ुन वर्श्र्वर्द्यालय, नेपाल के िै ने बताया।
“नेर्ार और मगर जैसे नतबेतो-बमनव समदुायों की ऊृं चाई पर रिने र्ाले नतब्बनतयों/िरेपाओृं से डीएनए के आधार पर काफी वर्शभन्नता हदखती िै । इनतिास, परुाताजत्र्क और आनर्ु शृं िक जानकारी का उपयोग करते िुए इस अध्ययन ने िमें नेपाल के नतबेतो-बमनव समदुायों के जनसख्ृं या इनतिास को समझने में मदद की िै।’
बनारस हिदृं ूवर्श्र्वर्द्यालय के प्रोफेसर और अध्ययन के सि-लेखक ज्ञानेश्र्र चौबे ने किा की, “भारत और नतब्बत के साथ नेपाल के साृंस्करनतक सबृं धृं उनके अनर्ु ाृंशिक इनतिास में भी पररलक्षक्षत िोते िैं।”
सीएसआईआर-सिें र फॉर सल्े यलु र एृंड मॉशलक्यलू र बायोलॉजी के ननदेिक डॉ वर्नय के नदृं ीकुरी ने किा, “इस तरि का अध्ययन प्रारृंशभक मानर् माइग्रेिन और वर्शभन्न आबादी की आनर्ु शृं िक समानताएृं स्थावपत की बेितर समझ के शलए सिायक िै।”